गांधीजी ने ऐसा क्या किया जीससे उनका फोटो रूपया पर है – पढिए गांधीजी पर विशेष रिपोर्ट:-गांधीजी कहते थे- -तन ढंकने के लिए भले ही कम कपड़ा पहनो, लेकिन जितना कपड़ा पहनो स्वदेशी हो। उनके लिए कपड़े जीवनशैली नहीं जीवन दर्शन थे…
गांधीजी…उम्र और अनुभव ने बदली पोशाक
बचपन : पारंपरिक वस्त्र पसंद थे
गांधीजी का जन्म गुजराती परिवार में हुआ। पोरबंदर और राजकोट में पारंपरिक गुजराती तरीके से उनकी परवरिश हुई। परिवार में उनका प्यार का नाम मोनिया था। माता-पिता और दोस्त इसी नाम से पुकारते थे। उस उम्र के उनके उपलब्ध फोटों में वे एक गोल टोपी पहने हैं।
1891: लंदन में विलायती ड्रेस
लंदन में पढ़ाई के दौरान कोट, पैंट, टाई और टोपी पहनने लगे। तब ये अंग्रेजी शैली का जीवन जीने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन भारतीयों के प्रति भेदभाव देख उन्होंने अपनी मूल पहचान की फिर अपनाया और 1913 में सूट छोड़कर थोती और कुर्ता पहनने लगे।
1915 : धोती और कुर्ते के साथ पगड़ी
वै खास तरह की काठियावाड़ी पगड़ी भी पहनने लगे थे। 1918 में अहमदाबाद में कारखाना मजदूरों शरीक की लड़ाई में हुए तो देखा कि पगड़ी में जितना कपड़ा लगता है उसमें ‘चार लोगों का तन बँका जा सकता है। इसे देख उन्होंने पगड़ी हमेशा के लिए उतार दी
1918 : खादी का प्रयोग शुरू किया
1918 की खेड़ा में किसानों के सत्याग्रह के दौरान खादी प्रतिज्ञा की, ताकि किसानों को कपास की खेती के लिए मजबूर ना किया जा सके। उन्होंने प्रण लेते हुए कहा था ‘आज के बाद मैं जिंदगी मर हाथ से बनाए हुए खादी के कपड़ों का इस्तेमाल करूंगा।
1919 : गांधी टोपी पहली बार पहनी
1919 में गांधी जी नवाब सैयद हामिद अली खान से मिलने पहुंचे थे। नवाब से मिलने के लिए सिर ढंकना जरूरी था। तब अली ब्रदर्स की मां अबादी बेगम ने बापू के लिए टोपी बनाई। आज यह गांधी टोपी के नाम से मशहूर है। अधिकतर नेता यही गांधी टोपी लगाते हैं।
1930 : दांडी मार्च से लाठी उठाई
1930 तक थोती, चादर, चप्पल और लाठी गांधीजी की पहचान बन गई थी। 1941 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय तक गांधीजी केवल एक छोटी-सी धोती पहनते थे। वे कहते थे. मेरे जीवन में परिवर्तन होते गए और उसके साथ-साथ मेरी पोशाक भी बदलती गई।
गांधीजी का जीवन-चक्र
प्रेम, ज्ञान, अन्न व बल के 4 स्तंभों पर टिका सत्य, इसका लक्ष्य हर व्यक्ति का विकास
ऐसा है सत्याग्रही का जीवन चक्र
कार्तिकेय साराभाई, गांधी आश्रम अहमदाबाद के चेयरमैन
सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित यह चक्र विनोबा भावे ने गांधीजी के मार्गदर्शन में बनाया था। चक्र के अनुसार सत्याग्रह के केंद्र में सत्य व अहिंसा हैं। केंद्र पर चार स्तंभ प्रेम, ज्ञान, अा और बल टिके हैं। आइए… गांधीजी के सत्याग्रह के सिद्धांत को इस चक्र से समझते हैं-
सत्याग्रह-के केंद्र में: सत्य और अहिंसा
सत्याग्रह यानी सत्य पर डटे रहना। सत्याग्रह तभी संभव है जब आपके पास प्रेम, ज्ञान, अन्न और बल हो। इन्हें हासिल करने के लिए एक सामाजिक संरचना की जरूरत है।
1. प्रेम के लिए चाहिए समाजशास्त्र
चक्र बताता है कि सत्य से प्रेम उपजता है और प्रेम की नींव पर ही समाज का विकास संभव है। सत्याग्रह के समाजशास्त्र के अनुसार समाज के विकास में तीन बातें अहम हैं- हरिजन सेवा, महिला उजति और जातिरहित व्यवस्था। आचरण में प्रेम का गुण विकसित हो जाए तो इस लक्ष्य को पाना आसान है।
2. ज्ञान के लिए शिक्षाशास्त्र चाहिए
ज्ञान का अर्थ है सीखना और सिखाना। प्रश्न यह है कि क्या सोला और सिखाया जाए। चक्र बताता है कि सत्याग्रह के शिक्षाशास्त्र में गांधीजी ने मातृभाषा, नई शिक्षा और राष्ट्रभाषा को जरूरी बताया। गांधीजी का मानना था कि जीवन स्तर में सुधार के लिए जान का बेहद महत्वपूर्ण स्थान है।
3. अन्न के लिए अर्थशास्त्र चाहिए
व्यक्तित्व विकास के लिए अन जरूरी है और अश्र का संबंध अर्थशास्त्र से है। गांधीजी के अनुसार गांवों में लोगों की आग में ग्रामोद्योग, अर्थसाम्य और खादी का महत्वपूर्ण स्थान है। इन तीनों से गांव-गांव में विकास और स्वावलंबन पैदा होगा। ये तीनों चीजें मजबूत अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है।
4. बल के लिए शरीरशास्त्र चाहिए
विनोबाजी ने सत्याग्रह के लिए शरीर के बल को जरूरी माना। इसे कैसे बढ़ाया जाए उसके लिए शरीरशास्त्र है। बल तभी आएगा जब व्यसन न हो, ग्राम आरोग्य और ग्राम सफाई का ध्यान रखा जाए। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए पूरा परिवेश अच्छा होना चाहिए। अच्छे परिवेश सेही विकास संभव है।
गांधीजी के सत्य की व्यापक परिभाषा इस चक्र से बताई विनोबा भावे ने
विनोबा भावे को भारत का राष्ट्रीय अध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहा जाता है। यह चक्र अहमदाबाद के साबरमती आश्रम में गांधीजी के निवास ‘हृदय कुंज’ में लगा है। चक्र बताता है कि सत्याग्रह किसी व्यक्ति या घटना तक सीमित नहीं है। यह आत्ममंथन है और इसका उद्देश्य समाज में व्यापक बदलाव है, ताकि हर व्यक्ति तक सत्याग्रह पहुंच सके।
गांधीजी के ऐतिहासिक भाषण
सत्याग्रह यानी अपने विरोधियों के हृदय को बदलना, न कि उन्हें हराना
गांधी जी ने कई मौकों पर अपने भाषणों में सत्य की ताकत का जिक्र किया था। आज पढ़िएगांधीजी के कुछ चुनिंदा भाषणों के अंश, जिनमें सत्य के प्रति उनका विश्वास दिखाई देता है
दांडी मार्च (12 मार्च, 1930) एकता में ही हमारी ताकत है
‘प्रिय देशवासियो, आज हम एक नए युग की शुरुआत कर रहे हैं। मैं सत्य और अहिंसा में अटूट विश्वास रखता हूं। सत्याग्रह का अर्थ है सत्य का आग्रह, और यही हमारा मार्ग है। लक्ष्य स्वतंत्रता है और हम इसे शांतिपूर्ण तरीके से प्राप्त करेंगे। नमक कानून अन्यायपूर्ण है, हम इसका विरोध करेंगे। लेकिन याद रखें, हमारा विरोध हिंसक नहीं होगा। हम अपने शत्रुओं को भी प्रेम से जीतेंगे। यह मार्ग कठिन है, लेकिन यहीं सच्चा मार्ग है। हमारी ताकत हमारी एकता में है, हमारी दृढ़ता में है। आज से हम अपने अधिकारों के लिए लड़ेंगे। यह सत्याग्रह का मार्ग है, जो हमें स्वतंत्रता की ओर ले जाएगा। स्रोत गांधों के संग्रहित कार्य, खंड 48
पूना पैक्ट भाषण (25 सितंबर, 1932)
आमरण अनशन अंतिम हथियार
आज हम एक ऐतिहासिक निर्णय लेने जा रहे हैं। जाति व्यवस्था के अन्याय को समाप्त करना होगा। सत्य और न्याय के लिए आमरण अनशन मेरा अंतिम हथियार है। लेकिन यह केवल एक व्यक्ति का संघर्ष नहीं है। यह पूरे समाज का संघर्ष है। हमें समझना होगा कि छुआछूत एक अभिशाप है जो हमारे समाज को खोखला कर रहा है। सत्याग्रह का अर्थ है दृढ़ संकल्प के साथ सत्य पर उटे रहना। हम अछूतों को उनका अधिकार देंगे, लेकिन इसके लिए हमें अपने दिल में बदलाव लाना होगा। जब तक हम सभी को समान नहीं मानेंगे, तब तक हम सच्चे अर्थों में स्वतंत्र नहीं हो सकते। लोत यंग इंडिया, अक्टूबर 1933
नोआखाली भाषण (7 नवंबर, 1946)
सत्य और अहिंसा सर्वोच्च धर्म हैं
‘आज हम एक गंभीर परिस्थिति में हैं। सांप्रदायिक हिंसा में हमारे देश को तोड दिया है। लेकिन में आप सभी से कहना चाहता हूं कि सत्य और अहिंसा सर्वोच्च धर्म हैं। सांप्रदायिक एकता के लिए हमें इन सिद्धांतों को अपनाना होगा। सत्याग्रह का मार्ग कठिन है, लेकिन यही एकमात्र मार्ग है। हमें अपने पड़ोसियों से प्रेम करना सीखना होगा, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। हमें एक-दूसरे के खिलाफ नहीं, बल्कि एक-दूसरे के साथ खड़े होना है। याद रखें, हिंसा से कभी शांति नहीं आएगी। केवल प्रेम और करुणा से ही हम इस संकट से बाहर निकल सकते हैं।’ स्रोत: गांधी के संग्रहित कार्य, खंड 66
स्वतंत्रता दिवस भाषण (15 अगस्त, 1947) सत्य ही हमें महान राष्ट्र बनाएगा
हमें स्वतंत्रता मिली है, लेकिन हमारा संघर्ष जारी है। सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही हम एक महान राष्ट्र बना सकते हैं। सत्याग्रह का अर्थ है अपने विरोधियों के हृदय को बदलना, न कि उन्हें हराना। आज हमें खुशी मनानी चाहिए, लेकिन साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी आती है। हमें उत्पने देश को गरीबी, अशिक्षा और भेदभाव से मुक्त करना है। यह काम आसान नहीं होगा। हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई हम सभी एक हैं। आइए, हम सब मिलकर एक ऐसा भारत बनाएं, जिस पर हमारी आने वाली पीढ़ियां गर्व कर सकें।’ स्रोत हरिजन पत्रिका, अपस्त 1947 अंक
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