300 रूपया करें इनवेस्टमेंट और लाखों का फायदा | जल्दी करें

300 रूपया करें इनवेस्टमेंट और लाखों का फायदा | जल्दी करें

300 रूपया करें इनवेस्टमेंट और लाखों का फायदा | जल्दी करें:-बीमा की बात छोटी सी राशि से गैजेट की चोरी, टूटफूट से नुकसान की भरपाई करें|

आज की डिजिटल दुनिया में हमारे स्मार्टफोन, लैपटॉप, टैबलेट जैसे उपकरण सिर्फ गैजेट नहीं हैं, बल्कि हमारे जीवन का भी महत्वपूर्ण अंग हैं। आपसी संपर्क, जरूरी दस्तावेज और व्यक्तिगत यादों और जानकारियों को सहेजने से लेकर हेल्थ ट्रेकिंग तक करने वाले इन डिवाइस के बिना अब हम अपने दिन की कल्पना नहीं कर सकते। जब ये खो जाते हैं, चोरी हो जाते हैं या क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, तो सिर्फ असुविधा ही नहीं होती, बल्कि कई बार हमारा सारा काम रुक जाता है।

ऐसे में इन कीमती गैजेट का इंश्योरेंस कराना बहुत ही जरूरी है। आजकल 300 रुपए सालाना प्रीमियम पर 10 हजार रुपए का कवर मिल जाता है। वहीं 2500 रुपए के प्रीमियम पर 1 लाख रुपए तक का कवर ले सकते हैं। पर लेकिन इंश्योरेंस कराने के बावजूद कई यूजर यह नहीं समझ पाते कि सिर्फ प्रीमियम का भुगतान करना ही काफी नहीं होता। अगर क्लेम लेने की जरूरत पड़ी तो कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। आइए कुछ महत्वपूर्ण बातों को समझते हैं।

हमेशा किसी प्रतिष्ठित बीमा कंपनी से ही गैजेट इंश्योरेंस खरीदें। ऐसी कंपनी चुनें जिसका क्लेम रेश्यो अच्छा हो। अनधिकृत स्रोतों या बिना लाइसेंस वाले बिचौलियों से बीमा खरीदने पर क्लेम रिजेक्शन की संभावना ज्यादा होती है.

पॉलिसी एक्टिव करते ही डिवाइस का सीरियल नंबर, खरीद की रसीद और तकनीकी विवरण तुरंत इंश्योरेंस कंपनी के पास रजिस्टर करें। रजिस्ट्रेशन में देर होने की वजह से क्लेम में विलंब या रिजेक्ट हो सकता है।

पॉलिसी के दस्तावेज को ध्यान से पढ़ें। ये अच्छी तरह समझ लें कि इंश्योरेंस में क्या शामिल है और किन पर क्लेम नहीं दिया जाएगा। एक अच्छी पॉलिसी में वर्ल्डवाइड कवरेज भी होना चाहिए, ताकि यात्रा के दौरान भी डिवाइस की सुरक्षा कायम रहे।

गैजेट खरीदने की रसीद, वारंटी कार्ड और इंश्योरेंस सर्टिफिकेट जैसे जरूरी दस्तावेज की ओरिजिनल, डिजिटल प्रतियां और फोटोकॉपी संभाल कर रखें। क्लेम करते समय इन दस्तावेजों की जरूरत पड़ती है।

ज्यादातर बीमा कंपनियों का नियम है कि नुकसान या चोरी के 24 से 48 घंटों के भीतर इसकी सूचना उन्हें दे दी जानी चाहिए। समय पर बीमा कंपनी को सूचित करने से क्लेम में आसानी होती है।

चोरी या नुकसान के मामले में, निकटतम पुलिस स्टेशन पर एफआईआर करवाकर रसीद लें। अधिकांश बीमा कंपनियां चोरी से संबंधित क्लेम के लिए एफआईआर की कॉपी मांगती हैं। कुछ इंश्योरेंस कंपनियां ऑनलाइन एफआईआर या साइबर क्राइम रिपोर्ट भी स्वीकार करती हैं।

देश में बीते कुछ वर्षों से मैन्युफैक्चरिंग म्यूचुअल फंड्स में निवेश बढ़ रहा है। सरकार द्वारा मेक इन इंडिया पहल को बढ़ावा दिए जाने के बाद इसमें और भी बढ़ोतरी आई है। पीएलआई स्कीम, निर्यात प्रोत्साहन और चीन 1 रणनीति अपनाने वाली ग्लोबल कंपनियां भारत में मैन्युफैक्चरिंग को सपोर्ट कर रही हैं। देश में एक्टिवली मैनेज्ड बारह मैन्युफैक्चरिंग फंड हैं। इनके द्वारा मैनेज की जाने वाली एसेट (एयूएम) करीब 33 हजार करोड़ रुपए है। वहीं चार पैसिव फंड भी हैं जिनका कुल एयूएम 473 करोड़ रु. है। ये फंड अपनी एसेट का कम से कम 80% हिस्सा अलग-अलग मार्केट कैप वाली मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों में निवेश करते हैं.

देश में मैन्युफैक्चरिंग फंड्स की शुरुआत को अभी बहुत साल नहीं हुए हैं। ऐसे में इनका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत छोटा है। इसलिए इनके ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर निवेश का फैसला करना मुश्किल है। हालांकि देश में सरकार द्वारा मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के तमाम उपाय किए जा रहे हैं ऐसा में इस सेक्टर का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। लॉन्ग टर्म में देखें तो मैन्युफैक्चरिंग फंड्स ने निफ्टी 50 से ज्यादा अच्छा रिटर्न दिया है।

जोखिम उठाने में सक्षम, सात साल या ज्यादा का लॉन्ग टर्म होराइजन रखने वाले निवेशक एसआईपी के जरिए निवेश का विकल्प चुन सकते हैं। पोर्टफोलियो के कुल जोखिम को 5% तक सीमित रखना चाहिए। रूढ़िवादी या पहली बार के निवेशकों इसके बजाय लार्जकैप ओरिएंटेड डायवर्सिफाइड इक्विटी म्यूचुअल फंड में निवेश करना चाहिए।

एक्सपर्ट्स का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग फंड थीमैटिक फंड हैं इसलिए इनमें उतार-चढ़ाव की संभावना ज्यादा रहती है। सेक्टर का प्रदर्शन विभिन्न आर्थिक और राजनीतिक बातों से प्रभावित हो सकता है। निवेशकों को अपनी एसेट एलोकेशन का आकलन करना चाहिए। अगर थीमौटिक फंड में एलोकेशन ज्यादा है तो उसे रीबैलेंस करना चाहिए

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