अल्फा मेल कैसे बने? अल्फा मेल बनकर आप बन सकते हैं सफल पुरुष

अल्फा मेल कैसे बने?

अल्फा मेल कैसे बने? अल्फा मेल बनकर आप बन सकते हैं सफल पुरुष:-सबसे आगे, सबसे प्रभावशाली यानी ‘अल्फा’ कौन नहीं बनना चाहता। फिल्म ‘एनिमल’ की बदौलत इन दिनों पुरुषों की दुनिया में तो यह एक चर्चित शब्द है। लेकिन आम धारणा में ‘अल्फा मेल’ को लोग आक्रामकता से जोड़ कर ही देखते हैं। क्या है ऐसी अल्फा शख्सीयतों का सच, बता रहे हैं|

वैसे तो अपने देश में फिल्म ‘एनिमल’ के आने के बाद से ‘अल्फा मेल’ नया शब्द नहीं रहा है। पर ‘अल्फा’ होने के जुनून में रंगी इस दुनिया से ये खबर अमेरिका की है। वहां एक महिला ने अपनी फेसबुक पोस्ट में बताया कि वह अपने बेटे के लिए दमदार मर्दाना नाम ढूंढ़ रही थी और अंततः उसने अपने बेटे का नाम अल्फा माएल आर्मस्ट्रॉन्ग रख दिया। इस पर उसकी खूब आलोचना भी हुई, लेकिन पुरुषों में ‘अल्फा’ होने के जुनून की यह एक बानगी है। फिल्म ‘एनिमल’ में रणबीर कपूर के किरदार ने भी इस पर चर्चा छेड़ दी। इस चक्कर में ‘अल्फा मेल’ एक पहेली बन चुका है। लोग उलझे हैं कि क्या अतिशय आक्रामकता ही अल्फा होना है?

अमेरिका के बायोलॉजिस्ट डेविड मेक को इस जुमले का श्रेय जाता है। उन्होंने साल 1970 में भेड़ियों पर लिखी एक किताब में इसका जिक्र किया था। इसे उन्होंने आपसी द्वंद्व जीतकर नेतृत्व का अधिकार पाने वाले सिर्फ अल्फा ही नहीं, यूनानी वर्णमाला से ऐसे छह और वर्ण हैं, जिनके माध्यम से पुरुषों की शख्सीयत को समझाया जाता है:

भेड़ियों के लिए लिखा। इसी के बाद से संभवतः ऐसे पुरुषों को भी अल्फा मेल कहा जाने लगा, 15 जीतना जिनकी आदत होती है और जो हमेशा सबसे आगे रहते हैं। वहीं आम धारणा और फिल्म ‘एनिमल’ में रणबीर कपूर के किरदार की बात करें, तो अल्फा मेल एक सनकी, जिद्दी और हिंसक शख्स समझ में आता है। विज्ञानियों की मानें तो हर शख्स जो धौंस दिखाता हो या सबसे उलझता हो, वह अल्फा मेल नहीं होता। सिर्फ आक्रामकता से बात नहीं बनती, इसके लिए सफल और प्रभावशाली होना भी जरूरी है। इसका असल मतलब है नेतृत्व करना, आगे रहना, जोखिम के लिए तैयार रहना।

मनोचिकित्सक डॉ. आपी बेनिवाल के मुताबिक, ‘इंसान सदा से हिंसक रहा है। एक समूह के मुखिया का चुनाव इसी आधार पर होता था कि वो कितना शक्तिशाली है। मगर तब परिस्थितियां और थीं और आज कुछ और। आज का अल्फा मेल जरूरी नहीं खून बहाए। मगर हां, वो नेतृत्व जरूर करता है। इंसान की परवरिश और उसके माहौल की इसमें बहुत बड़ी भूमिका होती है।’ उनका मानना है कि फिल्म ‘एनिमल’ जैसी फिल्मों से हमारे युवा प्रभावित तो होते हैं, मगर कुछ दिनों बाद वापस अपनी सामान्य मनोदशा में आ जाते हैं। हालांकि यह बहुत संवेदनशील मुद्दा। है, क्योंकि कंडक्ट डिसॉर्डर के शिकार बच्चे या युवा थोड़ा सा हिंसक माहौल या अनुभव मिलते ही उसकी तरह आकर्षित हो जाते हैं और उस प्रभाव में अपराध कर बैठते हैं। ऐसे युवाओं को गाइडेंस की जरूरत होती है।

मजन्म से कोई अल्फा मेल नहीं होता। राम नोहर लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. आपी बेनिवाल के मुताबिक, किसी भी इंसान की परवरिश और माहौल उसे बनाते-बिगाड़ते हैं। उसका व्यवहार कैसा होगा ये उन परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है, जिनमें उसका बचपन बीता। किशोर अवस्था में – आने के बाद उसे जिस तरह की संगत या – माहौल मिलता है वो भी उसकी पर्सनैलिटी का हिस्सा बनता है। कई लोगों के जीवन में ऐसे – मोड़ आते हैं जो उनकी शख्सीयत को बदलकर रख देते हैं। मैं ये नहीं कह रहा वो ऐसे मोड़ उन्हें एक झटके में अल्फा मेल बना देते हैं, मगर वो घटनाएं पुरानी घटनाओं के साथ जुड़कर नई शख्सीयत को जन्म दे सकती हैं।

  • बेहद दयालु और जमीन से जुड़े हुए होते हैं। शमीले और अलग-थलग रहने वाले होते हैं।
  • ये संपत्ति या करियर की उपलब्धियों से अधिक निजी संबंधों को महत्व देते हैं।

समान रूप से रचनात्मक और साहसी। इनकी पहचान अकसर मौज- मस्ती करने वाले लोगों के रूप में होती है। वे यात्रा करना पसंद करते हैं और जल्दी दोस्त बना लेते हैं।

डेल्टा मेल अपने नेतृत्व और महत्वाकांक्षा के बजाय अपनी क्षमता और कार्य की नैतिकता के लिए जाने जाते हैं। ऐसे लोग परिस्थितियों के लिहाज से खुद को आसानी से ढाल लेते हैं।

  • इनमें आत्मविश्वास तो अल्फा मेल की तरह ही होता है, मगर वो सब पर राज करना नहीं चाहते।
  • ये लोग अच्छे मददगार और मेंटर होते हैं।

ये लोग बेहद रचनात्मक हो सकते हैं। लोग क्या कहेंगे इसकी बहुत परवाह नहीं करते। आसानी से खुद को नहीं बदलते।

  • इस वर्ग में रखे जाने वाले पुरुषों को बुद्धिमान, मगर अंतर्मुखी माना जाता है।
  • इन्हें खुद का साथ पसंद आता है।
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