बिहार जमीन सर्वे | आपके पास जमीन का कागच नहीं है फिर भी जमीन आपकी ही रहेगी – नियम बदला

बिहार जमीन सर्वे | आपके पास जमीन का कागच नहीं है फिर भी जमीन आपकी ही रहेगी - नियम बदला

बिहार जमीन सर्वे | आपके पास जमीन का कागच नहीं है फिर भी जमीन आपकी ही रहेगी – जमीन सर्वे को लेकर लोगों में मची अफरातफरी के बीच राज्य सरकार ने बड़ा ऐलान किया है। जमीन बंटवारे संबधित और अद्यतन कागजातों को लेकर अंचल कार्यालयों की दौड़ लगा रहे परेशान लोगों (रैयतों) के लिए यह राहत की खबर है। राज्य के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा कि लोगों की संतुष्टि तक सरकार सर्वे जारी रखेगी। जब तक लोग अपने सभी तरह के कागजात उपलब्ध नहीं कराएंगे, सर्वे जारी रहेगा। पैनिक होने की जरूरत नहीं है। जमीन संबंधी कागजातों को सर्वे कार्यालयों में ऑनलाइन/ऑफलाइन जमा करने की कोई कट ऑफ डेट तय नहीं है। आगे भी तय नहीं होगी। सर्वे प्रदेश में जमीन विवाद खत्म करने के लिए किया जा रहा है। जमीन विवाद बढ़ाने के लिए नहीं।

राज्य के लोग यह समझें, परेशान नहीं हों। दरअसल जमीन संबंधी पेचीदगियों के कारण पूरे राज्य में अभी कई तरह की फैली भ्रांतियों के कारण गांवों में तनाव है। जमीन सर्वे के हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। पहले चरण में 20 जिलों के 89 अंचलों के 4927 मौजों/गांवों में भूमि सर्वेक्षण का काम 4 साल से चल रहा है। अब राज्य के कुल 45749 मौजों में से 38211 मौजों में सर्वे शुरू हुआ है। सिर्फ शहरी, असर्वेक्षित, टोपोलैंड या विवादित 2611 मौजों में ही सर्वे बाद में होना है।

बीते 3 जुलाई को जमीन सर्वे के लिए कांट्रैक्ट पर बहाल 9888 लोगों के नियोजन पत्र वितरण समारोह में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहा था… मैं हाथ जोड़ता हूं। कहिए तो पैर भी छू लूं, किंतु जमीन सर्वे का काम जुलाई 2025 के पहले जरूर पूरा किया जाए। यह काम विधानसभा चुनाव के पहले हर हाल में हो। जमीन किसकी है, यह तय नहीं है। हत्याएं होती हैं। हमने इन्हीं सब के खात्मे के लिए 2011 से सर्वे का काम शुरू कराया, ताकि तय हो जाए कि जमीन किसकी है। यह काम अब तक हो जाना चाहिए था।

1 डिजिटाइजेशन और ऑनलाइन करने के दौरान नाम, खाता खेसरा, रकबा तथा लगान से संबंधित गलती अब तक पूरी तरह सुधरी नहीं है। राज्य में कुल 4.18 करोड़ जमाबंदी है। इनमें 9.65 लाख जमाबंदी ऑनलाइन नहीं हो पाई थीं जिन्हें ठीक करने में भी कई तरह की अनियमितताएं की गई हैं।

2 जिन व चला पहले से हो रहा है उनमें विभाग द्वारा कई बार कहा गया कि म्यूटेशन और लगान रसीद लोगों से नहीं मांगें। पर लगान रसीद अपडेट करने के लिए अंचलों में मारामारी है।

3 राज्य की सभी 4.18 करोड़ जमाबंदियों को स्वैच्छिक आधार पर मोबाइल एवं आधार संख्या से जोड़ने वाला अभियान भी अब तक गति नहीं पकड़ पाया है।

4 अंचल, अनुमंडल डीसीएलआर समेत जिला रिकॉर्ड रूम में पड़े 100 साल पुराने सभी तरह के 18 करोड़ रेवेन्यू रिकॉर्ड हैं जिसमें अभी आधे की भी स्कैनिंग नहीं हो सकी है। निजी एजेंसी को सभी तरह के रेवेन्यू रिकॉर्ड के डिजिटाइजेशन और स्कैनिंग का काम सौंपा गया है, जो चल रहा है।

5 जमीन के मूल कागजात) होने से जमीन के मामले पेचीदा हैं। अपनी- अपनी जमीन के दस्तावेज चेक करने के लिए जिला स्तरीय कार्यालयों में खतियान की प्रति निकालने की होड़ मची हुई है।

इसके चलते जमीन के कागजातों और अपडेट लगान रसीद के लिए अंचल कार्यालयों में लोगों का भारी दबाव है। बड़े पैमाने पर आपसी बंटवारा नहीं होने से मामला और पेचीदा हो गया है। आए दिन किसी न किसी जिले से विवाद की सूचनाएं सरकार के पास पहुंच रही हैं। राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग लोगों की समस्याओं को तत्काल और तेजी से निबटाने में सफल नहीं हो पा रहा है।

चार चरणों-किस्तवार, खानापुरी, सुनवाई और लगान बंदोबस्ती में सर्वे का काम पूरा होता है। सबसे पहले किस्तवार (गांव की बाउंड्री और उसके अंतर्गत खेत का नक्शा निर्माण) होता है। फिर खानापुरी (प्लॉट का मालिक तय करना) करके खानापुरी पर्चा (खेत का कागज यानि कच्चा खतियान) तैयार होता है। ये दोनों काम जमीन पर पूरा करने के बाद संबंधित गांव और खेत का खेसरा पंजी (खेत का आंकड़ा) तैयार कर खेत का नक्शा (एलपीएम लैंड पार्सल मैप) और खेत का कागज (खानापुरी पर्चा) संबंधित जमीन मालिक को दिया जाता है। इन दोनों दस्तावेजों के आधार पर रैयत (जमीन मालिक) को सर्वेक्षण कार्य की जानकारी प्राप्त होती है। तब वो उन दस्तावेजों में किसी भी गलत प्रविष्टि के खिलाफ दावा/आपत्ति दायर करते हैं। उसके बाद जांचोपरांत खतियान का अंतिम रूप से प्रकाशन होता है और इस तरह संबंधित गांव (मौजों) के सर्वे का काम पूरा हो जाता है।

90 साल के अंतराल पर बिहार में जमीन सर्वेक्षण के लिए वर्ष 2011 में एक्ट और वर्ष 2012 में नियमावली बना कर 100 फीसदी एक्यूरेसी वाली विशेष जमीन सर्वेक्षण हो रहा है। बिहार में पहला जमीन सर्वेक्षण वर्ष 1890 के बाद शुरु हुआ था जो वर्ष 1920 यानी 30 वर्षों तक चला था। उस समय सर्वेक्षण में पहली बार ग्रामवार जमीन के पैमाना आधारित नक्शा और खतियान (अधिकार अभिलेख) बनाया गया। उस सर्वे को कैडेस्ट्रल या साविक सर्वे के नाम से जाना गया।

आजादी के बाद 1952 में पुनरीक्षित (रिविजनल) सर्वे शुरू किया गया जिसका आधार और पूरी कार्य प्रणाली कैडेस्ट्रल सर्वे के समान ही थी। फिर जमीन की संरचना और स्वामित्व में हुए बड़े बदलाव को देखते हुए आधुनिक तकनीकी आधारित जमीन सर्वेक्षण के लिए बिहार विशेष सर्वेक्षण एवं बंदोबस्त अधिनियम 2011 और नियमावली 2012 बनाई गई। इसके बाद एक्ट में 2012 और 2017 में तथा नियमावली में 2019 में संशोधन हुआ। फिर कोर्ट के निर्देश पर टेक्निकल गाइडलाइन बनाई गई और बिहार में जमीन सर्वेक्षण शुरू हुआ। इसके तहत पूरे सूबे का डिजिटाइज्ड मानचित्र तैयार किया गया है।

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